यू०पी० के बुंदेलखंड क्षेत्र में हिंदुओं का अत्यंत पवित्र तीर्थ चित्रकूट स्थित है। चित्रकूट परिक्षेत्र में भगवान शिव से जुड़े अनेक ऐसे स्थल है जिनकी ओर पुरातत्व विभाग का ध्यान अभी तक नहीं गया , जिसके कारण पर्यटकों की पहुंच इन तक नहीं हो पाई है। इन्हीं में से एक प्रसिद्ध स्थल है सोमनाथ मंदिर जिसे प्रथम ज्योतिर्लिंग भी कहा गया है।
यह सोमनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के जनपद चित्रकूट के कर्वी मुख्यालय से १२ कि०मी० पूर्व कर्वी मानिकपुर रोड के मध्यवर्ती ग्राम चर में वाल्मीकि नदी के तट पर एक पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर के गर्भ गृह की एक दीवार पर एक शिलालेख अंकित है जिसमें लिखा हुआ है की इसका निर्माण १४वी० शताब्दी के अंत में तत्कालीन नरेश राजा कीर्ती सिंह ने कराया।
सोमनाथ मंदिर के बारे में किंवदंती
सोमनाथ भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग है। मूल मंदिर सौराष्ट्र प्रदेश में था लेकिन मुस्लिम शासकों द्वारा उसे विध्वंस कर दिए जाने के कारण आततायी शासकों से भयभीत होकर वहां के तत्कालीन शासक राजा व्याघ्र देव जी ने वहां से पलायन कर चित्रकूट में शरण ली थी और यही पर राज्य स्थापित कर लिया था। इन्हीं के वंशज राजा कीर्ती सिंह ने ग्राम चर में अभिनव सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराया था जिसकी मान्यता ज्योतिर्लिंग पीठ के रुप में ही प्रतिष्ठित है।
जिस पहाड़ी पर इस मन्दिर का निर्माण हुआ है उस पहाड़ी को हमारे पूर्वज सौरठिया पहाड़ी कहते थे। उस समय सौरठिया का अर्थ लोगों की समझ में नहीं आया था पर अब स्पष्ट हो गया है कि सौराष्ट्र का अपभ्रंश सौरठिया है। इसके समीप ही तत्कालीन शासकों की उपराजधानी भी थी जिसका नाम मदनगढ़ था। आजकल लोग इसे ‘मदना’ नाम से पुकारते हैं। उसके ध्वंशावशेष आज भी विद्यमान हैं।
वास्तु कला का बेजोड़ नमूना
मन्दिर के प्राङ्गण में तथा मन्दिर के वाह्य भूभाग में जीर्णावस्था में असंख्य भग्नावशेष बिखरे पड़े हुए हैं और उनमे से एक भी ऐसा प्रस्तर खण्ड नहीं है जिसमें नक्काशी न हो, जो उत्कीर्ण न हो। मन्दिर की चतुर्दिक् भित्तियों पर देवी–देवताओं की मूर्तियाँ पत्थर की कटाई करके उकेरी (उत्कीर्ण) हैं जो प्राचीन शिल्प कला की अद्भुत नमूना है।
यहां पर गुप्त रूप से राज कोष छीपा कर रखा गया था–
घने जंगल के बीच नदी किनारे निर्मित इस देवालय के बारे में जनचर्चा है कि इसके निर्माता बघेल राजाओ ने स्वर्ण–रजत एवं रत्नों का अपरमित भण्डार गुप्तरूप में छिपा रखा था पत्थरो की बड़ी बड़ी पेटिया तथा गुप्तगृहों के भग्नावशेष इन अनुमानों के साक्षी हैं। पिछले वर्षों में अनेक लोगों को सोने चांदी के सिक्के मिले थे किन्तु वह धन उन्हें फलीभूत नहीं हुआ, पाने वाले को कोई न कोई अनिष्ठ हो ही जाता था। आसपास के लोग शंकर जी की पूजा–अर्चना करने आते रहते हैं। शिवरात्रि के दिन यहां मेला लगता है।
इस प्राचीन धरोहर के सरंक्षण की बहुत आवश्यकता है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर के सरंक्षण के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। स्थानीय प्रबुद्ध युवकों द्वारा श्रमदान, स्वच्छता, एवं सफाई कार्य अभियान चलाया जा रहा है। आसान पहुंच के लिए सड़कों का भी निर्माण किया जा रहा है। इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता है।
ऐसा बहुत सी अनमोल धरोहरों से हम वंचित रह जाते हैं।